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यारों बदल डालो- कविता (सूर्येश कुमार निर्मल)

 

़़़़़़़़़ यारों बदल डालो ़़़़़़़़़।          शरारत भरी दुनियाँ मे दोस्ती बदल डालो

      प्यार तो करो मगर 

        तोहफे बदल डालो

          चाँदनी रात में भी 

           यहाँ घुप्प अंधेरा है 

          उजाले के लिए यारो

              चाँद को बदल डालो

               खेलने तो आता नहीं 

                  मैंदान ही नहीं बड़ी जीत के लिए यारो

मैंदान को बदल डालो

जमाने में आज लोग 

आस्तीन के साँप है 

आस्तीन को बचाओ मगर 

साँप को कुचल डालो

इंसान तो सब है पर

इंसानियत रही नहीं 

इंसानो की खातिर

हैवानियत बदल डालो

    शरारत भरी दुनियाँ मे दोस्ती बदल डालो

प्यार तो करो मगर 

तोहफे बदल डालो

जाने अनजाने में 

जीती है बाजी हमने

जीतने की खुशी हम

ना रास्ते बदल डाला। 

        सूर्येश प्रसाद निर्मल 

                शीतलपुर धर्मालय।

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