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कविता: मेरे मौत पे वो जश्न मनाने आये हैं

 

मेरे दोस्त 

       मेरे मौत पे वो 

        जश्न मनाने आये हैं 

        क्या बहाना है यारों 

          कि दीये जलाने आये हैं 

             मेरी मैयत पे वो

              आँसू बहा ना सके 

                आँखों में बसि खुशी 

                   वो छुपा ना सके 

                मेरे घर वो खुद को

                     बचाने आये है

                    क्या बहाना है यारों 

                  दीये जलाने आये हैं 

    घर मेरा सूना

गलियाँ मेरी सूनी

मेरी पत्नी कीआँखें 

और माँग सूनी

मेरे सूने घर को

वो हंसाने आये हैं 

क्या बहाना है यारों कि दीये जलाने आये हैं 

बिगडी़ नहीं बनाते दोस्त 

बिगाड़ जाते है 

बसि बसाई गृहस्थी वो

उजार जाते हैं 

यही घर मेरे वो

बताने आये है

मुझसे लिये जो उधारी

वो चुकाऐगे कैसे 

अपने दीये पैसे 

वो भूलाऐगे कैसे 

मेरे बच्चों को गणित 

ये समझाने आये है 

    क्या बहाना है यारों कि दीये जलाने आये है 

फिर मेरी तेरहवीं पे

वो मेरे घर पे मिलेंगे 

कुछ अपनी कहेगे

कुछ उनकी सुनेगे

वो कुछ रस्मों रिवाज 

निभाने आये हैं 

क्या बहाना है यारों दीये जलाने आये हैं। 

          सूर्येश प्रसाद निर्मल शीतलपुर तरैयाँ।

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